Thursday, July 3, 2014

चाईबासा एक कस्बे के खत्म होते जाने की कहानी भाग 1

हम सब अपने-अपने घर लौट कर जाते हैं। घर जो कहीं इन मेट्रो शहरों से दूर किसी गाँव-कस्बे में बसा हुआ है। हर साल हम घर लौटते हैं और हर साल हमें कुछ नया, कुछ बदलता सा दिखता है। बदलाव जिसे हम महसूस कर पाते हैं, बदलाव जिसे हम देख-समझ पाते हैं और बदलवा जो हमें नॉस्टलैजिक करके अपनेे पुराने दिनों में पहुंचा देते हैं।
इन्हीं बदलावों पर, ऐसे ही किसी अपने कस्बे की कहानी लिखी है- मुन्ना कुमार झा ने। इसमें बाहरी बनाम भीतरी भी है, स्मार्ट फोन भी और एक कस्बे का ग्लोब होते जाने की कहानी भी। फिलहाल कहानी का पहला भाग-
(अविनाश)

दो लाख के आसपास की आबादी वाला यह कस्बा पुरे पश्चिम सिंहभूम का केंद्र है. यहाँ कोर्ट भी है और कमिश्नर, कमिश्नरी भी. लंम्बी लड़ाई के बाद अब एक कोल्हान यूनिवर्सिटी भी है जो आदिवासियों के अस्मिता का प्रतिक है मगर वीसी से लेकर दूसरे पदाधिकारी सब हिंदी भाषी है सब बाहरी है. डेढ़ किलोमीटर के भीतर सिमटे इस कस्बें की सड़कों पर तेज रफ़्तार से आप नयी चमचमाती गाडी भागते हुए देख सकते है. गाड़ियों के कलर और मॉडल को देख कर थोड़ी देर आपकों दिल्ली और मुंबई में होने जैसा एहसास होने लगता है.

एक दसक पहले जब चीन में ओलोम्पिक गेम की तैयारी के लिए निर्माण हो रहे थे तब इन ही इलाकों से आयरन पत्थर एक्सपोर्ट हुए थे. विकास के एकदसकीय दस्तक ने कस्बें के सड़कों के दोनों ओर बड़े छोटे कई बाज़ार खड़े कर दिए है ये और बात है की आजकल मंडी में मंदी का दौर अनवरत चल रहा है. सीडी से लेकर साडी जींस तक की सैकड़ों दुकानों में फैसन जोर मार रहा है. अब ग्लोबल वार्मिंग की वजह से यह के कई दूकान और रेस्त्रां वातनुकूलित हो गए है. वैसे कस्बें ने जब से शहर का आकार लिया है तब से गर्मी ज्यादा बढ़ी है इसलिए अब यहाँ लोग अपने घरों में भी एसी लगा रहे है. कस्बें के दो पुराने बाज़ार सदर और बड़ी बाज़ार विकास का हिस्सा बन गयी है अब बड़े शोरूम और बड़े - बड़े बैंक इन इलाकों में है, गंभीरता से देखने पर नेहरू प्लेस टाइप फील होने लगता है.

स्मार्ट फ़ोन का असर यहाँ भी है जो दोस्त मिले सब फेसबुक पर है और नहीं मिले वो भी समार्ट फ़ोन लिए नज़र आते दिखे . एयरटेल और वोडाफोन के टॉवरों की तरह बाहरी जनसंख्या भी दिन दोगिनी रात चौगुनी हो रही है. हिंदी भाषा और हिंदी भाषी इधर कुछ सालों में "हो' भाषी और लोगों पर असर कर गए है। शिक्षा के स्वीट होप ने इन इलाकों में अपनी जड़े जमा ली है अब यहाँ कोई अपने बच्चे को एसपीजी मिशन स्कूल और लुथेरन नहीं भेजना चाहता है. सब को अब डीएवी, संत विवेका, संत ज़ेवियर जाना है वहां इंग्लिश जो पढ़ना है।



कहानी का दूसरा भाग यहां पढ़े-  

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